मैसूर
- 1556 में तालीकोटा या राक्षसतांगड़ी या बन्नी हट्टी के युद्ध में हार के बाद 1612 में मैसूर में एक स्वतंत्र वाडियार वंश की स्थापना हुई।
- इस वंश का अंतिम शासक चिक्का कृष्णराज था जिसके समय वास्तविक सत्ता देवराज एवं नंदराज के हाथों में थी।
- मैसूर पर होने वाले मराठों के आक्रमण को रोक पाने में असफल रहे, इसका लाभ उठाकर 1761 तक हैदर अली शासक बन गया।
- हैदर अली 1749 में एक सैनिक के रूप में अपना जीवन आरंभ किया था। 1755 में डिंडीगुल में इसे फौजदार बनाया गया।
- यहीं पर इसने फ्रांसीसी ओं की मदद से एक आधुनिक शस्त्रागार की स्थापना की थी।
- इसके समय मराठों के मैसूर पर लगातार आक्रमण होते रहे थे, इसके साथ ही अंग्रेजों की दक्षिण में आक्रामक नीति के कारण चार आंग्ल मैसूर युद्ध हुए।
प्रथम आंग्ल मैसूर युद्ध (1767 से 1769)
- इस युद्ध के दौरान हैदर अली ने अंग्रेजों की सेना को हराया था। इस प्रकार दक्षिण के रियासतों में अंग्रेजों को हराने वाला यह प्रथम व्यक्ति था।
- हार के बाद अंग्रेजों को हैदर अली की शर्तों पर मद्रास की संधि करनी पड़ी जिसके बाद प्रथम आंग्ल मैसूर युद्ध समाप्त हुआ।
- इस युद्ध के दौरान बंगाल का गवर्नर लॉर्ड वेटेलेस्ट था।
द्वितीय आंग्ल मैसूर युद्ध (1780 से 1784 तक)
- इस युद्ध के दौरान ही पोटानोवा का युद्ध भी 1781 में हुआ था। अंग्रेज सेनापति आयरकूट ने इस युद्ध में हैदर को हराया था।
1782 में हैदर अली किसी युद्ध में घायल होकर मर गया।
- 1782 से 84 तक टीपू सुल्तान ने मैसूर की तरफ से युद्ध का नेतृत्व किया। 1784 में टीपू व लार्ड मैकेटनी के बीच मंगलौर की संधि हुई।
टीपू सुल्तान का वास्तविक नाम फतेह अली टीपू था। इन के सिक्कों पर शिव पार्वती हुआ विष्णु के चित्र थे। टीपू सुल्तान श्रृंगेरी के शारदा मंदिर व जगन्नाथ जी के मंदिर को अनुदान दिया करते थे।
- फ्रांसीसी क्रांति से प्रभावित होकर टीपू सुल्तान ने अपना नाम टीपू नागरिक रख लिया था और अपनी राजधानी श्रीरंगपट्टनम में स्वतंत्रता का वृक्ष लगाया था। जो मैसूर फ्रांस की मित्रता का प्रतीक था।
- इसने अंग्रेजों के विरुद्ध विदेशी सहयोग प्राप्त करने की कोशिश की थी।
- फ्रांस, मारीशस, कुस्तुनतुनिया आदि देशों में इसने अपना दूत भी भेजा था।
- टीपू सुल्तान ने तीन स्थानों मलिहाबाद, मंगलौर और वजीराबाद में आधुनिक शस्त्रागार की स्थापना की थी।
टीपू सुल्तान के कथन –
- शेर की तरह एक दिन जीना अच्छा है बजाय भेड़ियों के तरह 100 दिन जीने से।
- मैं अंग्रेजों के स्थल साधनों को समाप्त कर सकता हूं किंतु सागर को तो सुखा नहीं सकता।
तीसरा आंग्ल मैसूर युद्ध 1790 से 1792 तक
- इस समय गवर्नर जनरल लार्ड कार्नवालिस था जिसने स्वयं युद्ध का नेतृत्व किया था।
- हार की स्थिति को देखते हुए टीपू सुल्तान ने अंग्रेजों की शर्त पर श्रीरंगपट्टनम में संधि कर युद्ध को समाप्त किया।
- इससे संधि के बाद टीपू सुल्तान को अपना आधा राज्य गंवाना पड़ा व तीन करोड़ रुपए युद्ध क्षतिपूर्ति के लिए देना पड़ा।
- अंग्रेजों को जब तक पैसा नहीं मिल गया तब तक टीपू सुल्तान के 2 पुत्र को जमानत के तौर पर अपने पास रखा था।
चतुर्थ आंग्ल मैसूर युद्ध (1799)
- इस युद्ध में अपनी राजधानी में लड़ते हुए टीपू सुल्तान मारा गया। इस वक्त गवर्नर जनरल लार्ड वेलेजली था।
- युद्ध के बाद मैसूर के बड़े भाग पर अंग्रेजों का कब्जा कर लिया तथा छोटे से भाग पर वाडियार वंश के एक छोटे से बालक कृष्ण राज को राजा बना दिया।
- 1831 में गवर्नर जनरल विलियम बैंटिक ने कुशासन के आधार पर मैसूर को ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया किन्तु 1881 में वायसराय लार्ड रिपन ने मैसूर को पुनः मुक्त कर दिया।
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