अवध सूबा (प्रांत) कन्नौज से लेकर कर्मनाशा नदी तक विस्तृत था। यह सूबा अंग्रेजों और मराठों के बीच बफर स्टेट की तरह काम करता था। मोहम्मद शाह रंगीला के समय शआदत खान को 1722 में यहां का सूबेदार बनाया गया। क्योंकि सैयद बंधु की हत्या में शआदत खान की भी भूमिका थी इस कारण मोहम्मद शाह रंगीला ने इसे बुरहान उल मुल्क की उपाधि दी।
- बाद में शआदत खान ने मुगलों से स्वतंत्र व्यवहार करना प्रारंभ कर दिया।
- शआदत खान ने ही फैजाबाद जिले की स्थापना की थी जो कि प्रारंभ में अवध की राजधानी थी।
- 1739 में करनाल युद्ध के बाद इसने अपमान से बचने के लिए शआदत खान ने विष पीकर आत्महत्या कर ली थी।
- इसके बाद इसका भतीजा (दमाद) सफदरजंग अगला नवाब बना।
- 1748 में नवाब रहते हुए अहमद शाह ने इसे मुगल वजीर बनाया था।
- 1754 में इसकी मृत्यु हो गई, इसका मकबरा दिल्ली में है।
- इसके बाद इसका पुत्र शुजाउद्दौला अगला नवाब बना।
- इन्होंने पानीपत के तीसरे युद्ध में मराठों के खिलाफ अहमद शाह अब्दाली का साथ दिया था।
- कुछ समय तक शुजाउद्दौला ने शाह आलम द्वितीय को लखनऊ में शरण भी दिया था।
- 1764 के बक्सर युद्ध में और 1765 के इलाहाबाद की संधि के समय अवध का नवाब शुजाउद्दौला ही था।
- 1775 में इसकी मृत्यु के बाद आसफ उद दौला अगला नवाब बना।
- आसफ उद दौला के समय ही अवध की राजधानी लखनऊ पहुंची तथा इसी के समय लखनऊ में इमामबाड़े का निर्माण मोहर्रम मनाने के लिए किया गया था।
- आसफ उद दौला के समय ही अंग्रेज गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग पर अवध की बेगमों से धन वसूलने का आरोप लगा था।
आसफ उद दौला के बाद
वजीर अली
सादत अली (1801 में अंग्रेजों ने सहायक संधि की)
गाजी उद्दीन हैदर (इसे गवर्नर जनरल लॉर्ड हेस्टिंग ने राजा की उपाधि दी थी)
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अमजद अली शाह
- 1857 के विद्रोह के समय लखनऊ का नेतृत्व बेगम हजरत महल ने किया था, जो कि वाजिद अली शाह की पत्नी थी साथ ही इन्होंने बिरजिस कादिर को अगला नवाब भी घोषित किया था।
- वाजिद अली शाह ने बेगम हजरत महल को महक परी की उपाधि दी थी।