नूरजहां का असली नाम मेहरुन्निसा था। इनका जन्म 31 मई 1577 को अफगानिस्तान के कांधार में हुआ था। 17 दिसंबर 1645 ईस्वी में 68 वर्ष की आयु में पाकिस्तान के लाहौर में इन्होंने आखिरी सांस ली।
नूरजहां कौन थी?
इनके पिता का नाम गियास बेग और माता असमत बेगल थीं। इन्हें नूरमहल और नूरजहां की उपाधि मिली हुई थी।
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प्रारंभ में गियास बेग ‘शाह तहमास्य सफावी’ के अधीन वजीर के रूप में नियुक्त था। 1577 ईस्वी में शाह के मृत्यु के बाद गियास बेग की आर्थिक स्थिति दयनीय हो गई। अतः वह जीविका की तलाश में भारत आया।
पहले वह कंधार पहुंचा जहां एक धनी व्यापारी मालिक मसूद के काफिले में शामिल हो गया। कंधार में मेहरुन्निसा की जन्म हुआ। कंधार से मालिक मसूद के साथ वह फतेहपुर सीकरी आया। मसूद की सहायता से वह बादशाह अकबर की सेवा में उपस्थित हुआ जहां उसे एक साधारण पद पर नियुक्त किया गया।
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वह मिर्जा के नाम से प्रसिद्ध हो गया। 1595 ईस्वी में उसे काबुल का दीवान नियुक्त किया गया उसके बाद शाही कारखाने में दीवान-ए-बयूतात के पद पर प्रतिष्ठित किया गया।
अकबर के बाद जब जहांगीर शासक बना तो मिर्जा गियास बेग को एतमादुद्दौला की पदवी से सम्मानित कर संयुक्त दीवान नियुक्त किया।
मेहरुन्निसा की 17 वर्ष की आयु में विवाह 1594 ईस्वी में अब्दुर्रहीम खान-ए-खाना के अधीनस्थ एक फारसी युवक अली कुली खां से हुआ। विवाह के पश्चात वह शाही सेवा में शामिल हुआ।
अकबर ने अली कुली खां को शहजादा सलीम के अंतर्गत मेवाड़ अभियान के लिए नियुक्त किया गया। अली कुली द्वारा हाथ से एक शेर मारने के उपलक्ष्य में सलीम ने उसकी वीरता से प्रसन्न होकर उसे शेर अफ़गान की उपाधि प्रदान की थी।
जहांगीर ने शेर अफ़गान की विधवा मेहरुन्निसा व उसकी पुत्री लाडली बेगम को राजधानी बुला लिया। मेहरुन्निसा को राजमाता रुकैय्या सुल्तान की सेवा में नियुक्त कर दिया गया।
1611 ईस्वी मे नौरोज के अवसर पर जहांगीर ने मेहरुन्निसा को देखा और पर आसक्त हो गया। उसे नूरमहल व नूरजहां की उपाधि प्रदान की और मई 1611 ईस्वी में उससे विवाह कर लिया।
गुलाब से इत्र बनाने का आविष्कार नूरजहां की माँ अस्मत बेगम ने किया था। उसी ने इस विधि को अपनी पुत्री नूरजहां को बताया था।
नूरजहां गुट
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अपने विवाह के कुछ ही वर्षों पश्चात नूरजहां ने अपना दल बना लिया था जिसे नूरजहां गुट या जुंता गुट के नाम से पुकारा गया। इस गुट में नूरजहां, उसके पिता एतमादुद्दौला, मत अस्मत बेगम और उसके भाई आसफ खां व शहजादा खुर्रम शामिल थे। इस दल का प्रभुत्व 1622 ईस्वी तक स्थापित रहा।
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