भारत में क्रांतिकारी आंदोलन | Bharat Mein Krantikari Andolan

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बीसवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में भारत में उग्रवाद के साथ-साथ आतंकवाद का भी विकास हुआ था। उन्हीं के चलते भारतीय राजनीति में आतंकवाद का भी उदय हुआ। उग्र राष्ट्रवादियों का ही एक दल क्रांतिकारी के रूप में उभरा। यह दल बलपूर्वक अंग्रेजी सत्ता को समाप्त करना चाहता था।  इसके लिए इसने षड्यंत्रों एवं शस्त्र संघर्ष का रास्ता अपनाया।

 

राष्ट्रीय आंदोलन के द्वितीय चरण में नवराष्ट्र (उग्रवाद) का उदय हुआ। इसी काल में स्वदेशी आन्दोलद तथा क्रांतिकारी आंदोलन की शुरुआत हुई।

कांग्रेस की प्रारम्भिक उदारवादी नीतियों की असफलता के फलस्वरूप उग्रवादियों के रूप में प्रसिद्ध अनेक युवा नेताओं का मोह भंग हो गया।

नाव राष्ट्रवादी या उग्रवादी नेताओं का मानना था कि देश के अंदर कुछ किये बिना ब्रिटिश साम्राज्य से कुछ नहीं मिलेगा। इसी विचारधारा के फलस्वरूप देश में उग्रवादी विचारधारा का उदय हुआ।

क्रांतिकारी आंदोलन को दो वर्गों मे विभाजित किया जा सकता है।

  1. भारत में क्रांतिकारी आंदोलन
  2. भारत से बाहर क्रांतिकारी गतिविधियां

भारत में क्रांतिकारी आंदोलन

उग्रवाद की लहर सबसे पहले महाराष्ट्र से प्रारंभ हुई और शीघ्र ही इसने समूचे भारत को अपने प्रभाव में ले लिया। इसके बाद बंगाल, पंजाब और मद्रास जैसे प्रांत भी इससे अछूते नहीं रहे।

महाराष्ट्र में क्रांतिकारी आंदोलन

प्रथम क्रांतिकारी आंदोलन 1896-97 ईस्वी में पुना में दामोदर हरी चापेकर, वासुदेव हरीचापेकर और बालकृष्ण हरीचापेकर द्वारा स्थापित किया गया था। इसका नाम व्यायाम मण्डल था। इसके द्वारा वे नौजवानों का एक ऐसा संगठन तैयार करना चाहते थे जो देश के लिए अपने प्राणों को अर्पित कर सके।

इस गट ने साम्राज्यवाद के प्रतीक महारानी विक्टोरिया की मूर्ति के मुंह पर बंबई में अलकतरा लगाकर अपने गुस्से को प्रदर्शित किया। इनका अगला कदम रैंड व एमहर्स्ट नामक दो अंग्रेज अधिकारियों की हत्या कर देना था। जइस वजह से चापेकर बंधुओं को सरकार ने फांसी की सजा दी।

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1899 ईस्वी में मित्र मेला की स्थापना हुई। इसके प्रमुख सदस्य गणेश एवं दामोदर सावरकर थे। 1903 में ही विनायक दामोदर सावरकर द्वारा मित्र मेलो को अभिनव भारत समाज नाम की गुप्त क्रांतिकारी संस्था में परिवर्तित की गई। इसकि शाखाएं महाराष्ट्र के बाहर कर्नाटक और मध्यप्रदेश में भी बनाई गई।

गणेश दामोदर सावरकर को भारत से निर्वासित कर दिया गया। जिला मजिस्ट्रेट जैक्शन की हत्या के आरोप में दामोदर सावरकर सहित अनेक व्यक्तियों पर नासिक षड्यन्त्र केस चलाया गया। उन्हे भारत से अजीवन निर्वासिक कर कालापानी की सजा डी गई। आतंकवादियों ने गोखले की हत्या की भी योजना बनाई, परंतु अंततः इसे स्थगित कर दिया।

इन आतंकवादियों की सहायता गुप्त रूप से व्यापारी वर्ग एवं सामंतों ने भी कि परंतु 1910 ईस्वी तक सरकार की दमनात्मक नीतियों और धन की कमी के चलते महाराष्ट्र में आतंकवादी संगठन बिखर गए।

बंगाल में क्रांतिकारी आंदोलन

महाराष्ट्र की तरह बंगाल में भी आतंकवाद का प्रचार हुआ। बंग – विभाजन की योजना , इसके विरुद्ध जन आक्रोश की भवन एवं सरकारी दमनात्मक कार्रवाईयों ने आतंकवादी कार्रवाईयों का प्रसार किया।

आतंकवादी गतिविधियों की शुरुआत 24 मार्च 1902 ईस्वी में स्थापित अनुशीलन समिति से हुई। इसके संस्थापक सतीश चंद्र बसु थे। इसे प्रमथनाथ मित्र, चितरंजन दास, और सिस्टर निवेदिता का आरंभिक सहयोग मिला। यह संस्था प्रकट रूप से युवकों को व्यायाम की शिक्षा देती थी। परंतु गुप्त रूप से कुछ नवयुवकों को क्रांतिकारी कार्यों में भी लगाया जाता था।

समिति का एक कार्यालय ढाका (1905) में भी खोला गया। जिसका संचालन पुलिन बिहारी दास ने किया था। संस्था ने लोगों में क्रांतिकारी भवन जागृत कर भारत की स्वतंत्रता हेतु युद्ध को आवश्यक बताया। सदस्यों को छापामार युद्ध की शिक्षा दी गई। क्रांति का संदेश पूरे भारत में प्रचारित करने के लिए बंगाल के बाहर भी प्रयास किए गए।

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इसके लिए सदस्यों को बिहार, मद्रास और उड़ीसा भेजा गया। इस संस्था द्वारा प्रकाशित युगांतर नामक पत्रिका का संदेश घर-घर पहुंचाया। युगांतर के अतिरिक्त भवानी मंदिर, वर्तमान रणनीति, मुक्त कौन पाए पुस्तकों ने भी क्रांतिकारी विचारधाराओं को प्रचारित किए।

30 अप्रैल 1908 को प्रफुल्ल कुमार चाकी तथा खुदीराम बोस ने बम मारकर मुजफ्फरपुर (बिहार) जिले के जिला जज किंग्सफोर्ड की हत्या करने का प्रयास किया किन्तु दुर्भाग्यवश मिस्टर कैनेडी की पुत्री और पत्नी मारी गई॥ इस घटना के बाद प्रफुल्ल चाकी ने आत्महत्या कर ली तथा खुदीराम बोस को गिरफ्तार कर लिया और 11 मई 1908 को उन्हें फांसी दे दी गई।

पंजाब में क्रांतिकारी आंदोलन

पंजाब में क्रांतिकारी आंदोलन का उदय अनेक बार पड़ने वाले अकालों और भूराजस्व तथा सिंचाई कारों में वृद्धि के परिणामस्वरूप हुआ।

पंजाब में क्रांतिकारी आंदोलन के प्रणेता जतिन मोहन चटर्जी थे। इन्होंने 1904 ईस्वी मे सहारनपुर में भारत माता सोसायटी नामक गुप्त संस्था बनी। इनका परिवार सहारनपुर में राहत था। इसके सहयोगी लाला हरदयाल, अजित सिंह और सूफी अम्बा थे।

1907 ईस्वी में अजित सिंह और लाला लाजपत राय निर्वासित हो गए तथा लाला हरदयाल विदेश चले गए।

1908 ईस्वी में क्रांतिकारी गुट का नेतृत्व मास्टर अमीर चंद्र के पास आ  गया। इनका संबंध बंगाल के क्रांतिकारियों से था।

23 दिसंबर 1912 ईस्वी को दिल्ली में वायसराय लॉर्ड हार्डिंग पर बम फेंक गया। बम फेंकने के लिए बसंत विश्वास और मनमथ विश्वास बंगाल से आए थे।

संयुक्त राज्य अमेरिका में गदर पार्टी की स्थापना के उपरांत पुंजाब गदर पार्टी की गतिविधियों का केंद्र बन गया। पंजाब के बहुत से क्रांतिकारी, लाला हरदयाल तथा भाई परमानन्द ने संयुक्त राज्य अमेरिका स्थित गदर पार्टी आंदोलन में शामिल हो गए।

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मद्रास में क्रांतिकारी आंदोलन

मद्रास प्रांत में भी क्रांतिकारी विचारों का प्रसार हुआ। मद्रास में नीलकंठ ब्रह्मचारी और वंची अय्यर ने गुप्त रूप से भारत माता समिति की स्थापना की गई। अय्यर ने 17 जून 1911 ईस्वी को तिन्नेवेल्ली के जिला जज आशे की गोली मारकर हत्या कर दी और बाद में आत्महत्या कर ली।

दिल्ली में क्रांतिकारी आंदोलन

कलकत्ता से दिल्ली में राजधानी परिवर्तन के अवसर पर जब वायसराय लॉर्ड हार्डिंग दिल्ली में प्रवेश कर रहे थे। उसी समय चाँदनी चौक में 23 दिसंबर 1912 ईस्वी को उनके जुलूस पर बम फेंका गया। परंतु वह बच गया। लॉर्ड हार्डिंग की हत्या के षड्यन्त्र की योजना रास बिहारी बोस ने बनाई थी। बम फेंकने वालो में बसंत विश्वास (रास बिहारी का नौकर) और मनमथ विश्वास प्रमुख थे।

लॉर्ड हार्डिंग की हत्या से संबंधित मुकदमा दिल्ली षड्यन्त्र केस के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इस मुकड़में मे बसंत विश्वास, बाल मुकुंद, अवध बिहारी तथा मास्टर अमीरचंद को फांसी हो गई। इस षड्यन्त्र का रहस्य मिल जाने पर रास बिहारी बोस जापान चले गए जहां उन्होंने अपनी क्रांतिकारी गतिविधियाँ सक्रिय बनाए रखे। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान 1942 ईस्वी में उन्होंने इंडियन इंडिपेंडेंस लीग का गठन किया तथा आजाद हिन्द फौज के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका प्रदान किए।

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