उच्चावच की दृष्टि से उत्तर भारत के मैदान को दो भागों में बांटा गया है।
- भांबर प्रदेश
- तराई प्रदेश
- बांगर प्रदेश
- खादर प्रदेश
भांबर प्रदेश
- हिमालय से निकलने वाली नदियाँ हिमालय से बड़े-बड़े शिलाखंडों को बहाकर लाती हैं और इन्हें शिवालिक के गिरिपात प्रदेशों में छोड़ देती हैं। इन क्षेत्रों को गिरिपात प्रदेश कहा जाता है।
- भांबर प्रदेश शिवालिक के दक्षिण में सिन्धु नदी से तीस्ता नदी तक विस्तृत है।
- भांबर प्रदेश कृषि योग्य नहीं होता है क्योंकि ये चट्टानों से ढका हुआ है।
तराई प्रदेश
- जब नदियाँ भांबर प्रदेश से बाहर निकलती हैं तो बिखराव के कारण एक दलदले क्षेत्र का निर्माण हो जाता है, जिसे तराई प्रदेश कहते हैं।
- तराई क्षेत्र धान की खेती के लिए अत्यधिक उपयोगी होता है।
- तराई क्षेत्रों में कई प्रकार के रेंगने वाले जीव और मच्छर पाए जाते हैं, जिस वजह से ये क्षेत्र रहने के अनुकूल नहीं होता है।
भांबर क्षेत्र
- तराई क्षेत्र से निकलने के बाद नदियाँ समतल मैदान में बहती हैं। इस क्षेत्र को भांबर प्रदेश कहते हैं।
- इस क्षेत्र का निर्माण नदियों द्वारा लायी गयी मिट्टियों द्वारा ही हुआ है।
- यहाँ पर पुरानी जलोढ़ मिटटी के अवसाद पाए जाते हैं।
खादर प्रदेश
- लगातार नदियों द्वारा लायी गयी मिटटी से भांबर प्रदेश में मैदान की ऊँचाई ज्यादा हो जाती हो जाती है जिस वजह से नदिया निचले क्षेत्रों में उतारकर बहने लगती हैं।
- इस क्षेत्र को खादर प्रदेश कहते हैं।
- इस क्षेत्र में अत्यधिक बढ़ आते हैं, वजह से नदियाँ हमेशा यहाँ पर नई मिटटी लाकर जमा करती रहती हैं।
- हमेशा नई मिटटी आ जाने की वजह से ये क्षेत्र अत्यधिक उपजाऊ होता है।
- प्रतिवर्ष बाढ़ से नयी मिटटी लाने की प्रक्रिया को जलोढ़ निक्षेप कहते हैं।